sarojini naidu (DOB-13 February 1879)

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sarojini naidu (1879-1949) एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और कवयित्री थीं। उनका जन्म हैदराबाद में हुआ और उनकी शिक्षा भारत और इंग्लैंड में हुई। नायडू ने ब्रिटिश शासन से आजादी के लिए भारत के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे।

sarojini naidu

 

जन्म

13 फ़रवरी 1879

जन्म स्थान

हैदराबाद, हैदराबाद राज्य, ब्रिटिश राज

(वर्तमान तेलंगाना, भारत)

निधन

2 मार्च 1949 (आयु 70 वर्ष)

मृत्यु स्थान

लखनऊ, संयुक्त प्रांत, भारत

(वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

राजनीतिक दल

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

जीवनसाथी

गोविंदराजुलु नायडू ​(मृत्यु 1898)​

बच्चे

5 पद्मजा सहित

रिश्तेदार

वीरेंद्रनाथ (भाई)हरिंद्रनाथ (भाई)सुहासिनी (बहन)

पढाई

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय

गिर्टन कॉलेज, कैम्ब्रिज

व्यवसाय

राजनीतिक कार्यकर्ता, कवि

उपनाम

“भारत कोकिला”

“भारत कोकिशा”

“बुलबुल-ए-हिन्द”

sarojini naidu को उनकी खूबसूरत कविता के लिए “भारत की कोकिला” के रूप में जाना जाता था, जो अक्सर देशभक्ति, स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों के विषयों को प्रतिबिंबित करती थी। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला और किसी भारतीय राज्य (उत्तर प्रदेश) की राज्यपाल बनने वाली पहली महिला थीं।

भारतीय साहित्य और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, और वह नागरिक अधिकारों की वकालत और अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए एक प्रेरणादायक व्यक्ति बनी हुई हैं।

 यहां sarojini naidu के जीवन और योगदान के बारे में कुछ अतिरिक्त विवरण दिए गए हैं:

साहित्यिक उपलब्धियाँ: sarojini naidu एक विपुल कवयित्री थीं जिन्होंने अंग्रेजी में लिखा था। उनके कविता संग्रहों में “द गोल्डन थ्रेशोल्ड” (1905), “द बर्ड ऑफ टाइम” (1912), और “द ब्रोकन विंग” (1917) शामिल हैं। उनकी कविता अपनी गीतात्मक सुंदरता, ज्वलंत कल्पना और प्रकृति से लेकर देशभक्ति तक के विषयों के लिए जानी जाती है।

राजनीतिक सक्रियता: sarojini naidu महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्होंने नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन सहित विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और उनकी सक्रियता के लिए उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया।

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति: sarojini naidu अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भी शामिल थे। उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों और सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, भारत की स्वतंत्रता की वकालत की और अन्य देशों से समर्थन हासिल किया।

महिला अधिकार: sarojini naidu महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और महिला संगठनों और आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल रहीं।

साहित्यिक मंडली: sarojini naidu हैदराबाद में “निज़ाम के कवियों” के रूप में जाने जाने वाले साहित्यिक मंडली का हिस्सा थे, जिसमें अन्य प्रमुख लेखक और बुद्धिजीवी शामिल थे। इस मंडली ने उनके साहित्यिक और बौद्धिक विकास को बहुत प्रभावित किया।

पारिवारिक पृष्ठभूमि: sarojini naidu का जन्म हैदराबाद में एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता, अघोरनाथ चट्टोपाध्याय, एक वैज्ञानिक थे और उनकी माँ, बरदा सुंदरी देवी, एक कवयित्री थीं। नायडू को एक समृद्ध सांस्कृतिक परवरिश मिली जिसने उनकी साहित्यिक गतिविधियों को गहराई से प्रभावित किया।

विरासत: sarojini naidu भारतीय इतिहास में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बनी हुई हैं, जिन्हें साहित्य, राजनीति और महिला अधिकारों में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है। उनका जन्मदिन, 13 फरवरी, उनके सम्मान में भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कुल मिलाकर, sarojini naidu का जीवन और कार्य भारतीयों की पीढ़ियों, विशेषकर महिलाओं को उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने और समाज की बेहतरी में योगदान करने के लिए प्रेरित करता है।

 यहां sarojini naidu के बारे में कुछ अतिरिक्त बातें दी गई हैं:

शैक्षिक पृष्ठभूमि: sarojini naidu का बचपन से ही शैक्षणिक रुझान था। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय और बाद में किंग्स कॉलेज, लंदन में अध्ययन किया, जहां उन्होंने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्हें साहित्य और कविता में विशेष रुचि थी, जिसने एक कवि के रूप में उनके भविष्य के करियर की नींव रखी।

विवाह और पारिवारिक जीवन:sarojini naidu ने 19 साल की उम्र में एक चिकित्सक डॉ. गोविंदराजुलु नायडू से शादी की। उस समय सामाजिक मानदंडों के बावजूद, उनके पति उनकी शिक्षा और सक्रियता के समर्थक थे। उनके पांच बच्चे थे, और नायडू अपनी सार्वजनिक व्यस्तताओं के साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को संतुलित करने में कामयाब रहीं।

नेतृत्व भूमिकाएँ: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के अलावा, sarojini naidu ने अन्य नेतृत्व पदों पर कार्य किया। उन्हें अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक सुधारों की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

साहित्यिक शैली: sarojini naidu की कविता अक्सर पूर्वी और पश्चिमी प्रभावों को जोड़ती है, जो अंग्रेजी में लिखने वाले एक भारतीय कवि के रूप में उनके अद्वितीय दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है। उनके छंद अपने लयबद्ध प्रवाह, समृद्ध रूपकों और मार्मिक अभिव्यक्तियों के लिए जाने जाते थे। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताओं में “इन द बाज़ार्स ऑफ़ हैदराबाद” और “द पालकी बियरर्स” शामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय पहचान: sarojini naidu की साहित्यिक प्रतिभा ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। रवीन्द्रनाथ टैगोर और आर्थर साइमन्स जैसे साहित्यकारों ने उनकी प्रशंसा की। उनकी कविता को उसकी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक सीमाओं से परे सार्वभौमिक विषयों के लिए सराहा गया।

स्वतंत्रता के बाद का प्रभाव: 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी, sarojini naidu सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहीं। उन्होंने 1947 से 1949 में अपनी मृत्यु तक उत्तर प्रदेश की राज्यपाल के रूप में कार्य किया, और स्वतंत्र भारत में इस तरह का पद संभालने वाली पहली महिला बनीं।

स्मारक और सम्मान: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और साहित्य में sarojini naidu के योगदान को विभिन्न स्मारकों और सम्मानों के माध्यम से याद किया जाता है। उनकी स्थायी विरासत को श्रद्धांजलि देते हुए, भारत भर में कई संस्थानों, सड़कों और इमारतों का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

ये अतिरिक्त विवरण sarojini naidu के जीवन, उपलब्धियों और भारतीय समाज और संस्कृति पर स्थायी प्रभाव की अधिक व्यापक समझ प्रदान करते हैं।

sarojini naidu history

13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में जन्मीं sarojini naidu भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख हस्ती और एक प्रसिद्ध कवयित्री थीं।

यहां उनके इतिहास का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: sarojini naidu का जन्म एक बंगाली ब्रह्मो परिवार में हुआ था। उनके पिता, अघोरनाथ चट्टोपाध्याय, एक वैज्ञानिक थे और उनकी माँ, बरदा सुंदरी देवी, एक कवयित्री थीं। नायडू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद में प्राप्त की और मद्रास विश्वविद्यालय से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। बाद में वह किंग्स कॉलेज, लंदन चली गईं, जहां उन्होंने साहित्य का अध्ययन किया।

राजनीति में प्रवेश: इंग्लैंड में अपने समय के दौरान sarojini naidu भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन से गहराई से प्रभावित थीं। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले और एनी बेसेंट सहित प्रमुख भारतीय राजनीतिक नेताओं और बुद्धिजीवियों से मुलाकात की। भारत लौटने पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नेतृत्व: नायडू ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी राजनीतिक दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह महिलाओं के अधिकारों, सामाजिक सुधारों और ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी की वकालत करते हुए कांग्रेस की एक प्रमुख प्रवक्ता बन गईं।

नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन: नायडू ने 1930 में महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह और 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया था।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष: 1925 में, सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष के रूप में चुनी जाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उनका चुनाव भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

काव्यात्मक विरासत: अपनी राजनीतिक सक्रियता के साथ-साथ, नायडू एक प्रतिभाशाली कवि थे। अंग्रेजी में लिखी उनकी कविता देशभक्ति, प्रेम और सामाजिक न्याय के विषयों को दर्शाती है। उन्होंने अपने गीतात्मक छंदों के लिए “भारत की कोकिला” उपनाम अर्जित किया। उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में “द गोल्डन थ्रेशोल्ड” और “द बर्ड ऑफ टाइम” शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल पद: 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, सरोजिनी नायडू को संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया, वह स्वतंत्र भारत में इस तरह का पद संभालने वाली पहली महिला बनीं।

विरासत और मान्यता: भारत के स्वतंत्रता संग्राम और साहित्य में सरोजिनी नायडू के योगदान का जश्न मनाया जाता है। उनका जन्मदिन, 13 फरवरी, भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। वह भारतीय इतिहास में साहस, लचीलेपन और साहित्यिक उत्कृष्टता का प्रतीक बनी हुई हैं।

सरोजिनी नायडू का जीवन और विरासत भारतीयों की पीढ़ियों, विशेषकर महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम करती है, जो देश की प्रगति और सांस्कृतिक विरासत में योगदान देने की इच्छा रखती हैं।

सरोजिनी नायडू क्यों प्रसिद्ध हैं?

सरोजिनी नायडू कई कारणों से प्रसिद्ध हैं:

कविता: वह एक अत्यधिक प्रशंसित कवयित्री थीं, जो अपने विचारोत्तेजक और गीतात्मक छंदों के लिए जानी जाती थीं। नायडू की कविता देशभक्ति, प्रकृति, प्रेम और सामाजिक मुद्दों सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला की खोज करती है। उनकी काव्य रचनाओं की मधुर गुणवत्ता के कारण उन्हें “भारत की कोकिला” की उपाधि मिली। उन्होंने अंग्रेजी में आधुनिक भारतीय साहित्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजनीतिक सक्रियता: नायडू ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्होंने नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन सहित विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया। नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता थे और उन्होंने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसी अन्य प्रमुख हस्तियों के साथ मिलकर काम किया।

नेतृत्व: वह भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में अपने नेतृत्व और प्रभाव का प्रदर्शन करते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला थीं। नायडू के नेतृत्व गुणों और भारतीय स्वतंत्रता के प्रति समर्पण ने उन्हें व्यापक सम्मान और प्रशंसा दिलाई।

महिला अधिकार: नायडू महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के मुखर समर्थक थे। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, लैंगिक समानता और सामाजिक सुधारों के लिए अभियान चलाया। भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में अग्रणी महिला शख्सियतों में से एक के रूप में, उन्होंने अनगिनत महिलाओं को स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लेने और अपने अधिकारों का दावा करने के लिए प्रेरित किया।

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति: नायडू ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी भारत का प्रतिनिधित्व किया, भारत की स्वतंत्रता की वकालत की और अन्य देशों से समर्थन हासिल किया। उनके कूटनीतिक प्रयासों ने ब्रिटिश शासन के तहत भारत की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की और उपनिवेशवाद से मुक्ति के लिए वैश्विक आंदोलन में योगदान दिया।

कुल मिलाकर, सरोजिनी नायडू की प्रसिद्धि एक कवि, राजनीतिक नेता, नारीवादी और राजनयिक के रूप में उनके बहुमुखी योगदान पर टिकी हुई है। वह भारतीय इतिहास में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बनी हुई हैं, जिन्हें उनकी साहित्यिक उपलब्धियों और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए मनाया जाता है।

सरोजिनी को भारत की कोकिला क्यों कहा जाता है?

सरोजिनी नायडू को उनकी काव्यात्मक क्षमता और उनके छंदों की मधुर गुणवत्ता के कारण अक्सर “भारत की कोकिला” कहा जाता है। जिस तरह कोकिला अपने खूबसूरत और मंत्रमुग्ध कर देने वाले गीतों के लिए जानी जाती है, उसी तरह सरोजिनी नायडू की कविता को उसकी गीतात्मक लालित्य, ज्वलंत कल्पना और भावनात्मक गहराई के लिए मनाया जाता था।

उनकी कविता में भारत की संस्कृति, इतिहास और संघर्ष का सार समाहित था, जो देश भर के लोगों के बीच गूंजता रहा। “नाइटिंगेल ऑफ इंडिया” शीर्षक अंग्रेजी में भारतीय साहित्य में नायडू के महत्वपूर्ण योगदान और अपने शब्दों के माध्यम से प्रेरित करने और उत्थान करने की उनकी क्षमता पर प्रकाश डालता है।

इसके अतिरिक्त, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख नेता के रूप में नायडू की भूमिका ने अंधेरे के बीच कोकिला के गीत के समान लचीलेपन और आशा के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत किया। कुल मिलाकर, “भारत कोकिला” विशेषण उनकी कविता की सुंदरता और भारतीय लोगों की सामूहिक चेतना पर उनकी आवाज़ के गहरे प्रभाव दोनों को दर्शाता है।

sarojini naidu poems

सरोजिनी नायडू की कविता भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवादी उत्साह और गीतात्मक सौंदर्य का एक समृद्ध मिश्रण दर्शाती है। यहां उनकी कुछ उल्लेखनीय कविताओं का सारांश दिया गया है:

“हैदराबाद के बाज़ारों में”: यह कविता हैदराबाद के हलचल भरे बाज़ारों का एक सजीव चित्रण है, जो शहर के दृश्यों, ध्वनियों और सुगंधों को दर्शाता है। नायडू भारत की सांस्कृतिक विरासत की विविधता का जश्न मनाते हैं जो बाज़ारों में बिकने वाली विभिन्न वस्तुओं और सामानों में परिलक्षित होती है। जीवंत कल्पना और लयबद्ध छंदों के माध्यम से, वह पाठकों को भारतीय जीवन की जीवंत टेपेस्ट्री में डूबने के लिए आमंत्रित करती है।

“पालकी वाहक”: इस कविता में, नायडू पालकी ढोने वालों की कुलीन महिलाओं को सड़कों पर ले जाने की पारंपरिक भारतीय परंपरा का रोमांटिक वर्णन करते हैं। वह वाहकों को मजबूत और सुंदर आकृतियों के रूप में चित्रित करती है, जो उनके मंत्रों की लय में एक साथ चलते हैं। यह कविता औपनिवेशिक भारत की पृष्ठभूमि के बीच श्रम, भक्ति और मानवीय संबंधों की सुंदरता के विषयों की पड़ताल करती है।

“द इंडियन फैंटेसी”: यह कविता नायडू की राष्ट्रवादी भावनाओं और स्वतंत्र और स्वतंत्र भारत के उनके दृष्टिकोण को दर्शाती है। स्वप्न-जैसी कल्पना और विशद वर्णनों के माध्यम से, वह एक आदर्श भारत की कल्पना करती है जहाँ प्रकृति फलती-फूलती है और मानवता सद्भाव में रहती है। यह कविता आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता के लिए भारतीय लोगों की आकांक्षाओं और सपनों की मार्मिक याद दिलाती है।

“भारत के लिए”: इस कविता में, नायडू ने अपनी मातृभूमि, भारत के प्रति अपने गहरे प्यार और श्रद्धा को व्यक्त किया है। वह भारत को एक प्यारी माँ के रूप में प्रस्तुत करती है, उसके गुणों की प्रशंसा करती है और औपनिवेशिक शासन के तहत उसकी पीड़ा पर शोक व्यक्त करती है। नायडू के भावपूर्ण छंद राष्ट्रीय गौरव और एकजुटता की भावना पैदा करते हैं, अपने साथी देशवासियों से आगे बढ़ने और अपनी संप्रभुता को पुनः प्राप्त करने का आग्रह करते हैं।

ये सरोजिनी नायडू की काव्य रचनाओं के कुछ उदाहरण हैं, जो अपनी सुंदरता, गहराई और भारतीय संस्कृति और इतिहास के लिए स्थायी प्रासंगिकता के कारण पाठकों के बीच गूंजती रहती हैं।

 

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